फिर वही पुरानी कहानी: पूंजीवाद बनाम स्वास्थ्य और सुरक्षा

रिचर्ड डी. वोल्फ

अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में एक आदेश जारी करते हुए मांसाहार के व्यापार में जुड़े हुए तमाम लोगों को काम पर लौटने के लिए कहा है लेकिन वहीँ दूसरी तरफ उन्होंने बूचड़खानों के मालिकों को कोरोना से बचाव के बारे में कोई सुझाव नहीं दिया है, ना ही उन्हें ये बताया है कि उन्हें अपने कार्यस्थल को कैसे सुरक्षित बनाना है | अमेरिकन रिपब्लिक पार्टी के प्रस्तावित क़ानून की मानें तो उसमें ऐसे कार्यस्थलों पर कार्य के दौरान कोरोनवायरस संक्रमण द्वारा बीमार हुए या मारे गए कर्मचारियों की जवाबदेही, मालिकों की नहीं होगी, यह कैसा दोहरा मानदंड है | इस पूरे मामले पर अमेरिकन रिपब्लिक पार्टी चुप्पी साधे हुए है| देश भर में ऐसी कंपनियों के मालिक, कर्मचारियों को डरा धमका कर काम पर लौटने के लिए मजबूर कर रहे हैं | वो धमकी देते है कि या तो काम पर लौट आओ वरना नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा | इन कर्मचारियों के लिए नौकरी छूटने का अर्थ है एक तरह से परिवार के स्वास्थ्य व् भविष्य को खतरे में डालना और वो अपनी जान के लिए ऐसा नहीं कर सकते | वहीँ दूसरी तरफ नौकरी से निकाले जाने पर वो बेरोज़गारी बीमा की पात्रता से भी बाहर हो जाएंगे | अतः हर स्तिथि में नुकसान सिर्फ उनका ही होने वाला है |  

कंपनी मालिक एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्यक्षेत्र पर खर्च की गयी धनराशि को वसूलने के लिए किसी भी हद को पार कर रहे हैं मानों इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ उन कामगारों को होने वाला है जो वहां काम करते हैं | हाल ही में न्यू ऑरलियन्स कंपनी के अधिकारियों और ठेकेदारों ने एक छोटी सी हड़ताल के चलते अपने $10.25 प्रति घंटे के कचरा इक्क्ठा करने वालों को नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने कंपनी प्रशासन से काम करते हुए सुरक्षा उपकरणों की माँग की थी ताकि संक्रमण से बचाव हो सके | कंपनी ने हड़ताली श्रमिकों की जगह पास की एक जेल के कैदियों को मात्र $1.33 प्रति घंटे के भुगतान पर काम पर रख लिया | पूंजीवाद का हथौड़ा मुट्ठी भर मज़दूर वर्ग को इसी “विकल्प” से मारता है: असुरक्षित नौकरी, या गरीबी, या दोनों के साथ दास श्रम।

पूँजीवाद ने हमेशा कार्यस्थल की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए संघर्ष किया है । वहीँ दूसरी तरफ पिछली तीन शताब्दियों में पूँजीवाद जहाँ भी प्रचलित आर्थिक व्यवस्था बन गया वहाँ मज़दूरों ने इसका पुरजोर विरोध किया है । एक सदी पहले प्रकाशित हुई, अप्टन सिंक्लेयर की लोकप्रिय पुस्तक “द जंगल” ने शिकागो के मांस उद्योग की आँखें खोल देने वाली असुरक्षित और अस्वास्थ्यकर सच्चाई को उजागर किया था । 1906 के मांस निरीक्षण अधिनियम और शुद्ध खाद्य और औषधि अधिनियम ने सार्वजनिक रूप से इस उद्योग की कामकाजी स्थितियों पर मुखर होकर लोगों की नाराजगी का जबाब दिया | अमेरिका के सूअर के मांस के व्यवसाय में काम करने वाले कर्मचारियों में कोरोनावायरस संक्रमण की दर 27 प्रतिशत तक है जो कि सामान्य से बहुत अधिक है और इससे पता चलता है कि वो लोग स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से कितनी गंभीर परिस्तिथियों में काम कर रहे हैं और ये दर्शाता है कि कैसे उनके मालिक हमेशा कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य से समझौता करते हैं | 

अमेरिकी श्रम विभाग के भीतर व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रशासन (OSHA), 1970 में स्थापित किया गया था जिसका मूल उद्देश्य संघीय सरकार के साथ मिलकर विधिवत निरीक्षण करके व्यवसाय के मालिकों पर ये दबाब बनाना था कि वो अपने कर्मचारियों को स्वस्थ और सुरक्षित कार्यस्थल मुहैया करवाएं | इसकी सफलता तभी तय हो पाती जब यह उद्योग में संलग्न मालिकों को श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लागू करने के प्रयासों से बचने, कमजोर करने या उनकी उपेक्षा करने की कोशिश करते । 

पूंजीवादी उद्यमों के लाभ-संचालित तर्क कार्यस्थल की सुरक्षा और स्वास्थ्य स्थितियों पर तब तक पूंजी खर्च नहीं करने देते हैं जब तक कि उनके मुनाफे के बिगड़ने के आसार नहीं बन जाते हैं । पूँजीपति और अर्थशास्त्र की मुख्यधारा की पाठ्यपुस्तकें सदैव इस बात को दोहराती हैं कि लाभ हर उद्यम की एकमात्र अंतिम सीढ़ी है । लाभप्रदता प्रत्येक फर्म के आर्थिक प्रदर्शन को मापती है । लाभ ही प्रत्येक कंपनी की सफलता का मापदंड है | लाभ उद्यमियों के लिए पुरस्कार है; हानि दंड है | उद्यमी मुनाफा कमाने के लिए पूंजी का उपयोग करते हैं; यही उनका मुख्य लक्ष्य और प्राथमिकता है, ऐसे में कार्यस्थल की सुरक्षा और स्वास्थ्य सभी दूसरे या तीसरे स्थान पर आते हैं या शायद उससे भी निचले स्तर पर, ये सभी उनके मुनाफे में आने वाली बाधाएं हैं |  

पूंजीवादी व्यवस्था में हमेशा अल्पसंख्यक मालिकों के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए बहुसंख्यक कर्मचारी वर्ग के स्वास्थ्य और सुरक्षा की आहुति दी जाती रही है जबकि वही अल्पसंख्यक वर्ग अपने कारोबार के सभी महत्वपूर्ण फैसले लेता है और उन फ़ैसलों में बहुसंख्यक वर्ग को बाहर रखे जाने का भी फैसला होता है | इसीलिए ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मालिकाना वर्ग समाज में स्वस्थ, समृद्ध और सुरक्षित है जबकि कर्मचारी वर्ग का आंकड़ा गरीबी, अस्वस्थता और असुरक्षा से पटा पड़ा है, ये असमानता बहुत ही सामान्य रूप से नंगी आँखों से देखी जा सकती है | पूंजीवाद न केवल धन और आय की अत्यधिक असमानताओं को प्रदर्शित करता है, बल्कि उनसे उत्पन्न आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक असंगतियों को भी उजागर करता है | वर्तमान महामारी की परिस्थितियों ये सभी अपने वीभत्स रूप में हमारे समक्ष आ खड़े हुए हैं  |   

अकसर देखा जाता है कि जब कभी कहीं पर मालिकों को ज्यादा मुनाफ़ा हो रहा हो या फिर उनके आलोचक कर्मचारियों के साथ खड़े हो गए हों तब उनकी लोहे जैसी मजबूत लेकिन मखमल से ढकी हुई बंद मुट्ठी थोड़ी सी खुलती है और कुछ हद तक वो कार्य स्थल को अपने कर्मचारियों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित बनाने की कोशिश करते हैं अन्यथा वो कम से कम खर्च का ही सोचते हैं | यदि किसी कारण वश पूंजीपति कार्य स्थल पर स्वास्थ्य और सुरक्षा के सरकारी मानदंडों के तहत अपने व्यवसाय को चला पाने में अक्षम होते हैं तो वो कर्मचारियों को कमजोर करने, परेशान करने और यहाँ तक कि उनको निकाल देने के अभियान भी चलाते हैं और सरकारी मानदंडों की अनदेखी के लिए उनके पास वही पुराने तर्क होते हैं जिन्हें वो दुहराते रहते हैं जिनमें प्रमुख रूप से वो इस बात पर जोर देते हैं कि ऐसे मानदंडों से उनकी उत्पादक क्षमता प्रभावित होगी और उन्हें नए कर्मचारियों को नौकरी देने में संकोच होगा जिससे कर्मचारी वर्ग निराश और आहत होगा | अतः इस तरह के बेबुनियाद तर्कों के सहारे वो बहुत हद तक कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और सुरक्षा के मानदंडों से सफलतापूर्वक बरी हो जाते हैं |

पूंजीवादिता का एक लम्बा इतिहास रहा है जिसमें काम करने वाले कम वेतन और बेहद ख़राब स्तिथियों में भी सदैव इस आशंका में काम करते रहते हैं कि कहीं उनके मालिक उनके स्थान पर दूसरे अन्य लोगों को ना ले आएं और उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े | बेरोज़गारी, लोगों को रोज़गार के साथ साथ असुरक्षित और अस्वास्थ्यकर कार्य स्थल को भी स्वीकार करा देती है | बेरोज़गारी एक तरह का अत्याचार है जो एक वर्ग द्वारा दूसरे पर किया जाता है | यह कम मजदूरी, असुरक्षित और अस्वस्थ कार्य स्थलों को बनाए रखने में मदद करता है । यही वजह है कि पूंजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों की कम से कम ज़रूरतों के साथ भी काम चल जाता है जिसमें मज़दूरों की संख्या कम होती है जबकि प्रति सप्ताह उनके कार्य के घंटों की संख्या कुछ अधिक होती है | सामान्यतः यह विकल्प आम प्रचलन में नहीं है क्योंकि कर्मचारियों के एक बड़े हिस्से को नौकरी से निकाल देना, उन बदनसीबों को रोज़गार से वंचित कर देना और उनकी जगह बेहतर, अनुशासित कर्मचारियों को लाना, आसान नहीं होता और फिर जो नए लोग आएँगे वो उन परिस्थितियों को स्वीकार करेंगे या अस्वीकार करेंगे, इसका खतरा भी बना रहता है |  

आज की स्तिथि में मालिक और सरकार दोनों ही इस वायरस से निपटने में बराबर असमर्थ हैं और इस खतरनाक महामारी को रोकने में उनकी भूमिका लेशमात्र है | अचानक एक साथ हुई तालाबंदी ने बहुत बड़ी संख्या में बेरोज़गारी की समस्या को विकराल रूप दे दिया है | संभवतः महंगे उपकरण और व्यवस्थाएं सामाजिक दूरी, बड़ी संख्या में जांच, साफ़ सफाई और संक्रमण मुक्त वातावरण आदि बहुत हद तक कार्य स्थलों को सुरक्षित करने में सक्षम हो जाएंगे लेकिन इसके बावजूद मालिक और उनके राजनीतिक गुर्गे किसी ना किसी तरह कर्मचारियों को असुरक्षित और अस्वस्थ कार्य स्थलों पर काम करने के लिए दबाते रहेंगे | अर्थव्यवस्था को पुनः खोलने का आदेश पारित कर दिया गया है | मालिकों को चाहिए कि वो पुराने असुरक्षित और अस्वस्थ कार्य क्षेत्र को नए तरीके से अपने कर्मचारियों के लिए तैयार करें और देश हित में अपनी भागीदारी देकर अपने कार्य क्षेत्र में एक मिसाल पैदा करें | हांलाकि मालिक लोग अब इस तरह के दिखावे के लिए तैयार हो रहे हैं और लगातार इसे नाटकीय तरीकों से लोगों के सामने रख रहे हैं | 

इस ऐतिहासिक समानांतर पर विचार करें: अमेरिकी और अन्य जगहों के पूंजीपति नियमित रूप से कम से कम एक बार, पांच साल की उम्र के बच्चों को काम पर रखते थे | उनकी नौकरियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति ज्यादातर अपर्याप्त और अक्सर खराब ही रहती थी | उनका वेतन वयस्कों की तुलना में बहुत कम होता था | उन्हें काम करते हुए चोट के साथ – साथ शारीरिक शोषण, यौन उत्पीड़न और भावनात्मक शोषण का सामना करना पड़ता था | उनकी शिक्षा की पूरी तरह से अनदेखी की जाती थी | इस सब के बावजूद भी पूँजीपतियों ने हमेशा जोर देकर ये कहा है कि आर्थिक कल्याण और समृद्धि के लिए बाल श्रम की आवश्यकता है । इसे समाप्त करने से बाल श्रम की तुलना में संभवतः एक कहीं बड़ा आर्थिक संकट आ सकता है जो बाल श्रम से अधिक घातक हो सकता है | इस किस्म का एक पूरा बाज़ारवाद बंद होने का था | मालिकों ने तर्क दिया कि गरीब परिवारों को इन बच्चों की आय की जरूरत थी और वो अपने बच्चों को काम करने के लिए भेजने के लिए तैयार थे | मालिकों ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि वो भी अभी तक जरूरत मुताबिक एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य स्थल की परिस्थितियों को तैयार करने के लिए बहुत कुछ खर्च कर चुके थे |    

श्रमिक वर्ग की प्रतिक्रिया है कि बाल श्रम पर जरूरी समझ को विकसित करने के लिए राजनीतिक शक्ति की जरूरत है | अगर वो ऐसा करते हैं तो बाल श्रम को हमेशा के लिए ख़त्म किया जा सकता है | श्रमिक वर्ग के माता पिता पूँजी वादियों से भिड़ गए और उनकी शर्त थी कि बालश्रम के आतंक को हमेशा के लिए ख़त्म किया जाए, वो कुछ और सुनने को तैयार ही नहीं थे| मालिकों को मुनाफ़ा कमाने के अन्य तरीके ढूंढने होंगे | बहुत से लोगों को बात समझ आ गयी जबकि अन्य लोग विदेशों में ऐसी जगह जाकर बस गए जहाँ बाल श्रम अभी भी उपलब्ध है | वे अब भी ऐसा ही करते हैं |   

आज की समानांतर गैर-परक्राम्य मांग: असुरक्षित और अस्वास्थ्यकर कार्य स्थलों को समाप्त करना चाहिए | इसके लिए अलग तरीकों से कार्य स्थल तैयार किये जाएँ | बहुसंख्यक, कर्मचारी वर्ग अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य की स्तिथियों को स्वयं नियंत्रित करें | अल्पसंख्यक वर्ग, मालिकों, निर्देशक मंडलों व् अन्य के लाभ की तुलना में ये उच्च प्राथमिकता का मसौदा होना चाहिए | पुनः एक बार समाज की जरूरत के लिए इस संक्रमण को दूर करके श्रमिक आधारित आर्थिक ढाँचा तैयार करते हैं |   

(रिचर्ड डी. वोल्फ यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स, एमहर्स्ट में अर्थ शास्त्र के प्राध्यापक हैं) 

(अंग्रेज़ी लेख का हिंदी अनुवाद चारु शर्मा ने किया है जो पेशे से एक फ़िल्म लेखक व निर्देशक हैं. अंग्रेजी लेख आप https://janataweekly.org/an-old-story-again-capitalism-vs-health-and-safety/  यहा पढ सकते है.)

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